मुसलमानों की बदहाली का सबब
एक अहम सवाल की तरफ़ आप की तवज्जो दिलाना चाहता हूं जो अक्सर और बेशतर हम में से लोगों के दिल में पैदा होता है, आप देख रहे हैं की इस वक्त पूरी उम्मते मुस्लिमा जहां कहीं आबाद है वो मसाइल का शिकार है, परेशानियों और मुसीबतों में गिरफ्तार है, मसलन चाइना में मुसलमानों के हालात, फिलिस्तीन के हालात, सोमालिया या अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के हालात, मिडिल ईस्ट में खाना जंगी वगैरा।
यह सारे मसाइल जो पूरी उम्मते मुसलिमा को पेश हैं उनके सबब पर जब गौर करने की नौबत आती है तो जिन लोगों के दिलों में ईमान की जर्रा बराबर भी रमक है वह लोग गौर करने के बाद यह कहते हैं की इन मसाइब और आलाम का बुनियादी सबब यह है कि हम दीन को छोड़ बैठे हैं, नबी करीम ﷺ की तालीमात पर अमल करना छोड़ दिया है, अल्लाह की बंदगी करना छोड़ दी है, आप ﷺ की सुन्नतों की इत्तेबा करना छोड़ दिया है और बदआमालियों में मुबतला हो गए हैं। इस के नतीजे में यह आफतें हमारे ऊपर आ रही हैं, और यह बात दुरुस्त भी है क्योंकि क़ुरान की एक आयत का माफहुम है—
“कि जो कुछ मुसीबतें तुम्हें पोहुंचती हैं, वह सब तुम्हारे हाथों के करतूत का नतीजा होती हैं, और बहुत से तुम्हारे बदआमाल ऐसे हैं कि अल्लाह ﷻ उनको माफ फरमा देता है, उनकी कोई सजा तुम्हे नही देता लेकिन बाज़ बद आमाल ऐसे होते हैं जिनकी सज़ा इस दुनिया के अंदर इन मुसीबतों की शक्ल में दे दी जाति है”
कोशिश राएगा क्यों?
लेकिन यह सारा तज़किरा होने के बावजूद यह नजर आता है कि हालात में कोई बेहतरी नहीं है, बहुत सी जमातें और इदारे इस मक़सद के तहत कायम हैं के हालत की इसलाह करें, लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे ऐसा मालूम होता है की बेदीनी का जो सैलाब उमड़ रहा है उसकी रफ्तार में और इजाफा हो रहा है, उसमे कमी नहीं आ रही यानी जो फासला सफर से पहले था वो अब भी क़ायम है, हज़ारों कुरबानियां भी दी जा रही हैं, जमाते और इदारे इसलाहे हाल में लगे हुए हैं, मेहनत हो रही है हमारा कुरेश अन निकाह मिन सुन्नती ग्रुप भी इसपर काम कर रहा है, मेहनत कर रहा है लेकिन आलमे वजूद के अंदर इनका कोई वाजेह फायदा नज़र नहीं आता ऐसा क्यों है?
इसलाह का आगाज़ दूसरों से
क़ुरान ए करीम हमे इस तरफ तवज्जो दिला रहा है कि जब तुम हालात की इसलाह करने की फिक्र लेकर उठते हो तो तुम हमेशा इसलाह का आगाज़ दूसरों से करना चाहते हो यानी तुम्हारे दिलों में ये बात होती है कि लोग खराब हो गए हैं, लोग बद अमालियो में मुबतला हैं, लोग धोका फरेब कर रहे हैं, बद उनवानियों में मुबतला हैं, रिश्वत ले रहे हैं,बड़ी बड़ी शादियों में फिजूल खर्ची करके रसूल अल्लाह ﷺ की सुन्नतों की मुखलफत कर रहे हैं, सूद खा रहे हैं, उर्यानी और फहशी का बाज़ार गरम है इन सब बातों के तजकिरे के वक्त तुम्हारे जहन में यह होता है कि यह सब काम दूसरे लोग कर रहे हैं, उन लोगो को इन कामों से रोकना है, और उनकी इसलाह करनी है।
अपनी इसलाह की फिक्र नहीं
लेकिन यह खयाल इत्तेफ़ाक से किसी ख़ास बंदे के दिल मे आता है कि मै भी किसी खराबी के अंदर मुबतला हूं, मेरे अंदर भी कुछ खराबियां पाई जाती हैं और उन खराबियों की इसलाह करना मेरा सबसे पहला फर्ज़ है मैं दूसरों की तरफ बाद में देखूं, पहले अपना जायजा लूं और पहले अपनी इसलाह की फिक्र करूं आज हमारा हाल यह है कि जब इसलाह के लिए कोई जमात, कोई इदारा या कोई तंजीम कायम होती है तो उस इदारे को चलाने वाले और उस तंजीम को कायम करने वालो में से हर शख्स के ज़हन में ये होता है कि मै आवाम की इसलाह करूं, लेकिन मै अपनी इसलाह करूं ये किसी किसी अल्लाह के बंदे के दिल में आता होगा।
बात में वज़न नहीं
इस अमल का नतीजा यह है की जब मैं अपने ऐबो से बेखबर हूं, अपनी खराबियों की इसलाह की तो मुझे फिक्र ही नही है, मेरे अपने आमाल अल्लाह ﷻ की रज़ा के मुताबिक़ नही है और मै दूसरों की इसलाह की फिक्र में लगा हुआ हूं तो उसका नतीजा यह होता है कि मेरी बात में न तो कोई असर और वज़न होता है और ना उसके अंदर बरकत और नूर होता है कि वह बात दूसरों के दिलों में उतर जाए और वह उसको मानने पर अमादा हो जाएं।
अपनी इसलाह की फिक्र करो
आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं यह शदीद फितने का दौर है, इसलिए रसूल ﷺ ने फ़रमाया कि अपनी इसलाह की फिक्र करो और यह देखो कि मेरे अंदर क्या बुराई है, और मैं किन बुराइयों के अंदर मुबतला हूं, हो सकता है कि पूरे मआशरे के अंदर जो फितना फैला हुआ है वह मेरे गुनाहों की नहूसत हो, हर इंसान को यह सोचना चाहिए कि यह जो कुछ हो रहा है शायद मेरे गुनाहों की वजह से हो रहा है। आज हम लोगो को दूसरो पर तफसरा करना आता है कि लोग ऐसा कर रहे हैं, लोग वैसा कर रहे हैं लोगो के अंदर ये खराबिया हैं जिसकी वजह से फसाद हो रहा है लेकिन अपने ऊपर गौर करने वाले बहुत कम मिलेंगे, इस लिए दूसरो को छोड़ो और अपनी इसलाह की फिक्र करो।