अल्लाह ﷻ और रसूल ﷺ की इताअत ईमान का जुज़
हमारे बड़े बुज़ुर्ग वा नबी ए बरहक इब्राहीम अलैहिस्सलाम जो अल्लाह ﷻ के बड़े प्यारे थे जिन्हें अल्लाह का खलील कहा जाता है, जब नमरूद ने हज़रत को आग में डाला तो फरिश्तों ने आकर कहा कि हम क्या खिदमत कर सकते हैं, तो हज़रत ने रो रो कर ये नही कहा की अल्लाह मै तो तेरा खलील हूं ये काम तो तू किसी ओर से भी करा सकता है मुझे डर लग रहा है बल्कि फरिश्तों से पूछा कि “ये बताइए की मेरे इस हाल की अल्लाह को ख़बर है या नहीं”? फरिश्तों ने जब कहा की अल्लाह ﷻ आपको देख रहा है तो हज़रत ने फ़रमाया की मुझे आपकी कोई ज़रूरत नहीं, फिर एक सफर में इब्राहीम अलेहे सलाम सफा मरवा के लकोदक मैदान में पहुंचे और हुक्मे रब्बी हुआ कि बीबी हाजरा अ. को यही छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ तो हज़रत ने रो रो कर ये नहीं कहा कि रब्बा मैं अपनी बीवी से बहुत प्यार करता हु इस बियाबान में कैसे छोड़ दूं, फिर बीबी हाजरा को जब लगा कि हज़रत जा रहे हैं तो बीबी लिपट लिपट कर रो रो कर कह सकती थीं– ” मैं कहां जाऊं मेरे पास आपका शीरखार बच्चा है इसका क्या करूं” सिर्फ सब्र किया।
जब बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम को कुरबानी के लिए ले जाया जा रहा है बता भी दिया की आपकी कुरबानी की जायेगी इस्माईल अलैहिस्सलाम ने ये नहीं कहा के अब्बा मैं तो समझता था की आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, कोई बाप कितना भी संगदिल क्यों न हो बेटे को कुर्बान नहीं कर सकता, बेटा भी वो जो 80 साल की उम्र में अल्लाह ने दुआओं से अता किया हो और बेटा जो पैदाइशी नबी हो वो बेटा खुशी खुशी कुरबानी के लिए तय्यार हो गया और हुकमे रब्बी के सामने सरे तस्लीम खम किया और बस सब्र किया।
जिस नबी ए बरहक इमाम उल अम्बिया ﷺ को अपने पास बुलाने के लिए अल्लाह ﷻ ने सातों आसमानों को सजाया हो व सभी हूराने जन्नत व मलाइका में हलचल मच गई हो उसी प्यारे नबी ﷺ को हुक्में रब्बी होता है कि छुपते छुपाते मदीना तशरीफ़ ले जाइए अल्लाह के नबी ﷺ कह सकते थे कि या अल्लाह मदीना तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक رضى الله को भेज दीजिए या कम से कम छुपने को तो न कहिए, मेरा भी दिल डरता है मैं भी इंसान हूं लेकीन जैसा अल्लाह ने चाहा आप ﷺ ने वैसा ही किया फिर गज़वा ए ओहद में आप ﷺ ने एक बार भी शिकवा नहीं किया की रब्बा मेरा दनदान मुबारक शहीद करा दिया आपने या मेरे प्यारे चचा हज़रत हमजा رضى الله की शहादत की क्या ज़रूरत थी और बहुत मुसलमान थे — नहीं कह सकते थे क्योंकि हुक्मे रब्बी मानना ज़रूरी था, इसी तरह जब माज़ इब्न जबल رضى الله को जब आप ﷺ जिहाद पर भेजते हुए नसीहत फरमा रहे थे तो माज़ इब्ने जबल रोते जाते थे कि हुज़ूर ﷺ की नसीहत में साफ इशारे थे के आप ﷺ से दुबारा मुलाकात नहीं होगी कह सकते थे की या नबी अल्लाह मेरा दिल आपके बगैर नहीं लगेगा किसी और को भेज दीजिए मगर नहीं कहा क्योंकि हुक्मे नबी भी हुक्मे रब्बी ही होता है।
नबी ए अखिरु ज़मा मुहम्मद ﷺ ने अपनी हयात ए मुबारका में एक जिहादी लश्कर रवाना किया था पहले पड़ाव पर पहुंचे थे की नबी पाक की अलालत की ख़बर लश्कर में पहुंची लश्कर वापस मदीना आ गया रसूल ए पाक ﷺ का विसाल हो गया हज़रत अबु बक्र رضى الله को खलीफा बना दिया गया कुछ कबाईल के मुर्तद होने की खबरें आने लगीं जिस लश्कर को रसूल ए पाक ﷺ ने रवाना किया था हज़रत अबू बक्र ने सबसे पहले उसकी रवानगी का हुक्म दिया तो लोगों ने मशवरा दिया की इर्तदादे कबाइल की वजह से मदीने पर बेरूनी वा अंदरूनी हमलो के मद्दे नजर या तो अभी लश्कर रवाना ना किया जाए या कम से कम लश्कर का आधा हिस्सा मदीना की हिफाज़त वा मुर्तदो की सरकोबी के लिए रख लिया जाए हज़रत अबू बक्र कह सकते थे की अब नबी मौजूद नहीं वही का आना बंद हो चुका अब हमारे पास पैसा भी है, फौजें भी हैं,सारी दुनियां का हमने ठेका भी नही लिया सारी दुनियां को उसके हाल पर छोड़ो मुर्तद कबीलो को उनके हाल पर छोड़ो मदीने पर मजबूती से राज करेंगे अमीर उल मोमिनीन ने ऐसा नहीं कहा बल्कि कसम खाई की मुझे कसम है उस ज़ात पाक की जिसके कब्ज़े में मेरी जान है जिस लश्कर को अल्लाह के रसूल ﷺ ने रवाना किया था उसे जाना पड़ेगा चाहे मेरे सामने दरिंदा खड़ा हो और लगता हो के लश्कर के जाते ही दरिंदा मुझे फाड़ देगा। लश्कर को रवाना करते ही आपने कसम खा कर कहा की जब तक मुर्तद कबीलो को सीधा ना कर दू वापस नहीं आऊंगा और ऐसा ही किया और अल्लाह ने मदद भी क्योंकि सुन्नत की बरकत थी हज़रत उमर इब्न अल खत्ताब رضى الله जैसे जलील उल कद्र सहाबी जिनसे शैतान वा जिन्नात तक डरते हों अशरा मुबश्शरा में भी दाखिल हैं जिन्हे अल्लाह के प्यारे नबी ﷺ जन्नती होने की बशारत सुना चुके हों, जब उन्हें दौराने नमाज़ चाकू से गोदा जा रहा था तो आप رضى الله ये भी कर सकते थे की अपने कातिल को पकड़ते नमाज़ की परवा न करते बक्शिश तो आपकी हो ही चुकी है, मगर आप ने ऐसा न करके गिरने से पहले अपनी जगह इमाम का इंतजाम किया ताकि नमाज़ ज़ाया न हो الله أكبر
मुझ ना अहल की गुज़ारिश
अब मैं आप सभी से व पूरी उम्म्त ए मुस्लिमा से एक पुरखुलूस व मोअदबना गुज़ारिश कर रहा हूं की अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लग जाए या किसी का दिल टूटे तो मेहरबानी करके मुझे अपना खोटा सिक्का समझ कर माफ़ कर देना।
मैं आप सभी उन लोगों से जो अपने बच्चों की तरबियत के दौरान कहते हैं की बेटा हमारी तरह सुन्नत के पाबंद बनना, बच्चे बिचारे क्या जानें की नसीहत करने वाले बाप का कारोबार सूद से मुताल्लिक है, ये इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है या नबी आखिरउज्जमा ﷺ की सुन्नत है या सहाबा की सुन्नत है ऐसे ही एक शक्स जिसका नाम मुहम्मद से शुरू होता है वो दहेज में मिली हुई 5 तोले की सोने की चेन पहने हुए हुलिया यहूदियों जैसा डिपार्टमेंट के लोगो से कहता है की हम लोग सुन्नतों के पाबंद हैं डिपार्टमेंट वाले क्या जाने की ये इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है या मुहम्मद उर रसूल अल्लाह ﷺ की सुन्नत है या सहाबा की सुन्नत है, इस ही तरह एक शक्स अपने किसी ग्रुप में या किसी पंचायत में शामिल होने के लिए दाढ़ी पर उस्तरा चला कर कलफ के कपड़े पहन कर ये सोच कर की मुझे इस्लाहे मआशरा पर स्टेज पर बोलना पड़ेगा दहेज में मिली हुई 15 लाख़ रुपए वाली कार से पोहूच कर सबसे पहले खुद को सुन्नत का पाबंद कहता है ज़रा सोचें ये इब्राहीम की सुन्नत है या मुहम्मद ﷺ की सुन्नत है या सहाबा की सुन्नत है, जबसे लोगों ने सुन्नतों की बातें करना शुरू किया है, दहेज के खिलाफ बोलना शुरू किया है, पंचायते हुई हैं , ग्रुप बने लोगों ने खुराफातों में इज़ाफा कर दिया व हम सभी लोग आज उन पार्टियों में शिरकत करते हैं और कल पंचायत में बोलते हैं।
सुधार के लिए मेरी राय
1.हम सभी को चाहिए की ऐसी तकरीबात से गुरेज करें।
2.हमें चाहिए की खुद अपने बेटे बेटियों के निकाह सुन्नत ए नबवी पर करके दिखाएं जैसे नबियों ने जैसे सहाबा ने अपनी जिम्मेदारी खुद उठाई।
3.हमें चाहिए की हम दहेज लेने से गुरेज करें ताकि दहेज देना भी न पड़े।
अगर वाकई आपको मअशरे की फिक्र है तो आप सभी को 25 लाख की गाड़ी के ऊपर तरबियत व तालीम याफता गरीब लड़की को तरजीह देनी पड़ेगी,मैं पहले ही माफ़ी मांग चुका हूं हो सकता है मैं गलत हूं, हो सकता है आपका ही तरीका सही हो लेकिन बराए मेहरबानी इस पर ज़रूर गौर करें की मुनाफिक किसे कहते हैं और ठिकाना कहां है।