जहेज़ एक लानत है।
जहेज़ की लानत हमारे मआशरे में इस तरह घर कर चुकी है, कि अब इसे ख़त्म करना और इस से जान छुडाना मुश्किल ही नहीं बल्कि ना मुमकिन नज़र आता है। जदीद और तालीम याफ्ता घरानों में उसी दिन से जहेज़ की रकम जमा होने लगती है जिस दिन से उनके यहां बेटी जन्म लेती है।
तालीम की कमी
ऐसे में गैर तालीम याफ्ता घरानों से कैसे ये उम्मीद कर सकते हैं कि वोह इसके खिलाफ़ कोई कदम उठाए? उनकी ज़िंदगी का तो मकसद ही जहेज़ है, बेटी को तालीम से महरूम रखा जाता है क्योंकि उसका जहेज़ जमा करना है, बेटों को भी छोटी छोटी उम्रों में कमाई करने भेज दिया जाता है ताकि वह अपनी बहनों की शादी के लिए पैसे जमा कर सकें,ऐसे में वह तालीम से पीछे रह जाते हैं।
ससुरालियों के मुतालबे
और फिर भी जब जहेज़ के हवाले से उम्मीदें पूरी नहीं होती हैं, तो लड़की को ससुराल में अज़िय्यत दी जाती है, जानवरो जैसा सुलूक किया जाता है और बाज़ दफा तो जान से भी मार दिया जाता है।
यही वजह है कि अक्सर वालदैन सिरे से बेटी की पैदाइश चाहते ही नहीं, क्योंकि उन्हें पता है कि वह मुसलसल दबाव में रहेगें और ससुरालियों के मुतालबे उनका सुकून लूट लेंगे कभी भात, कभी झूट, कभी ईदी, कभी छूछक वगैरा–वगैरा।
हमें अल्लाह के सामने पेश होना है
अगर जहेज़ की लानत पर रोक ना लगाई गई तो हमारी आने वाली नस्लें तबाह हो जाएंगी वह रसूल ﷺ की सुन्नतों को भूल जाएंगी, हम सबको अल्लाह के सामने पेश होना है,
खुदारा, खुदारा, खुदारा
सुधर जाएं।